Wednesday, July 29, 2009

ਮੇਰੇ ਦੇਸ਼ ਵਿੱਚ

ਵਿੱਕ ਰਿਹੈ ਇਖ਼ਲਾਕ ਮੇਰੇ ਦੇਸ਼ ਵਿੱਚ

ਹਰ ਮਾਨਸ ਗ਼ਮਨਾਕ ਮੇਰੇ ਦੇਸ਼ ਵਿੱਚ

ਮਿਲਦੀਆਂ ਤਿੰਨ ਸ਼ੈਆਂ ਹਰ ਇਕ ਰਾਹ ਉੱਤੇ,

ਨੰਗ, ਗਰੀਬੀ ਖਾਕ ਮੇਰੇ ਦੇਸ਼ ਵਿੱਚ

ਸ਼ਿਵ-ਦਿਵਾਲੇ ਦੀਆਂ ਮੂਰਤਾਂ ਦੁੱਧ ਪੀਵਣ,

ਬੰਦਾ ਕਟਦੈ ਫਾਕ ਮੇਰੇ ਦੇਸ਼ ਵਿੱਚ

ਡਿਗਰੀਆਂ ਨੂੰ ਸਾਂਭ ਕੇ ਘਰੀਂ ਟਰੰਕਾਂ ਵਿੱਚ,

ਗੱਭਰੂ ਰਲਦੇ ਚਾਕ ਮੇਰੇ ਦੇਸ਼ ਵਿੱਚ

ਕੁੱਤੀ ਚੋਰ ਨੂੰ ਦੇਖ ਕੇ ਪੂਛ ਹਿਲਾਉਂਦੀ ਹੈ,

ਐਸਾ ਹੈ ਇਤਫਾਕ ਮੇਰੇ ਦੇਸ਼ ਵਿੱਚ

ਮਦਰ ਟਰੇਸਾ ਕੋਈ ਵੀ ਹੈ ਬਣ ਸਕਦਾ,

ਐਨੇ ਰੁਲਣ ਜੁਆਕ ਮੇਰੇ ਦੇਸ਼ ਵਿੱਚ

ਰੋਟੀ ਬਾਬਤ ਚੁੱਪ ਰੱਬ ਦੇ ਬਾਰੇ 'ਗਿੱਲ'

ਮਿਲੇ ਜੁਆਬ ਪਟਾਕ ਮੇਰੇ ਦੇਸ਼ ਵਿੱਚ

2 comments:

  1. bahut vadiya tusi manno ja na manno is vicho nastikta chalkde e....par bahoot khob suttia nu jagoan da hella

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  2. हमारी मूढ़ मती आज सुबह से खुजिया रही थी ,विचारो का ग्रेह युद्घ चल रहा था . बे रोजगारों की मांग की तरह हमारे अक्लदान का पन्ना भी भरा हुआ था ;जैसे की हर वक्ता को वहम होता है की स्रोत उसको सुन रहा है एवं जो कुछ वक्ता जानता है उसका दशमांश भी श्रोता को नही मालूम . वैसे ही हर ब्लाग्गेर को भे यह राहत रहती है की उसके ब्लाग मैं जो है बस... आज शनिचर है तो कुदर तन कल रवि को ही आना होगा .
    ब्लोग्गेर्स,ओर्कट वाले ,यू ट्यूब वाले जैसे किसी त्रिकोने आकार का सा कोई नाता है . यू ट्यूब पर किसी कमलेश जी का प्रताप /प्रलाप दिखा ,सोचा मुल्क आज़ाद है भई . फिर नर नारी को बराबरी की वकालत ही सर्वत्र होती है .
    नर नारी की बराबरी के प्रश्न पर फिर मेरी मूढ़ मती घास चरने चली जाती है
    भारत भर में ज्वलंत विषय है नर नारी की समानता , लेखको की कलम भी इस विषय पर खूब चलती है ,भाषण प्रतियोगिताओं में इस विषय पर बोल कर इनाम पर अधिकार करना आसान रहता है ,किन्तु मैं औंधी खोपडी भारी पलकों वाला मूढ़ प्राणी हूँ मुझे समानता की चाह कभी दिखी नहीं ,ठीक उसी तरह जैसे दलित ,शब्द दलित से मुक्ति नहीं पाना चाहते क्युकी ऐसा करने से सुविधाए खो जाने का भय बना रहता है .नर नारी समानता का प्रश्न भी ऐसा ही है . जब बात अधिकारों की रहती है समान अधिकारों की बात शोर से कही सुनाई जाती है . किन्तु जब बात कर्तव्य पालन की हो तो ...
    सामान्य दृश्य है ;किसी भी बस में देखिये सामान्यत किसी लेडी सवारी को खडा देख कर कोई भी सुसंसंकारित पुरुष अपनी सीट छोड़ दे गा किन्तु किसी बजुर्ग बीमार पुरुष के लिए किसी नारी को सीट छोढते कम से कम मै ने नही देखा .
    सहकर्मी महिलाओं की धारणा ये बनी देखी है की वो तनखाह तो बराबर लेंगे ,छुट्टी औ अन्य लाभ पुरषों से भी अधिक किन्तु सख्त काम आ जाये तो वो पुरुष सह कर्मियों से आशा रखती है की ये काम तो उन के हिस्से ही चला जाये . कैसी समानता?? कौन चाहता है ऐसी समानता .
    मै कहता की चलिए एक ऐसा समाज निर्माण किया जाए जहां कोई दलित /पद दलित न हो ... जहां समानता हो ... जहां कोई बुधू न हो सभी बुध्ध पुरुष हों मैं अपना सर रखता हूँ नींव के पथथर की जगह .. किन्तु कोई चाहे भी तो समानता . रोगी ही उपचार न करवाना चाहे तो हम क्यों बोलें
    हम बोले गा की बोलो गे की बोलता है
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